आयुर्वेद में हर रोग के निवारण की चिकित्सा है: आचार्य वैद्य मनोज कुमार शर्मा
आयुर्वेद के द्वारा सभी रोगों का निवारण संभव है अगर सही तरीके से इलाज किया जाय: वैद्य मनोज कुमार शर्मा
आयुर्वेद, एक प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति, मनुष्य के स्वास्थ्य और रोगों के उपचार के लिए ज्ञान और विज्ञान का एक आदर्श संग्रह है. यह प्राकृतिक उपचारों, आहार, औषधि और जीवनशैली के माध्यम से रोगों के निदान और उपचार में मदद करता है। आयुर्वेदिक चिकित्सा का मुख्य लक्ष्य संपूर्ण स्वास्थ्य और तंत्रिका संतुलन को स्थायी रूप से सुधारने में सहायता प्रदान करना है.
वैद्य मनोज कुमार शर्मा: फोटो TIK |
आयुर्वेद में रोग का निदान करने का सिद्धांत एक पूर्णतः व्यक्तिगत दृष्टिकोण है. यह मानता है कि हर व्यक्ति एक अद्यात्मिक स्वास्थ्य के साथ जन्मतः आता है और उसकी दिन प्रतिदिन की जीवनशैली उसके दोषों के संतुलन को बनाए रखने में सहायता कर सकती है.
आयुर्वेद चिकित्सा में, रोग के निदान के लिए चिकित्सागत और व्यक्तिगत अवस्था का अवलोकन किया जाता है, जिसमें रोगी के शारीरिक और मानसिक स्थिति, अनुकरण और प्राकृतिक प्रकृति का मुल्यांकन किया जाता है. यह निदान प्रक्रिया रोग के मूल कारणों का पता लगाने में मदद करती है और रोगी को व्यक्तिगत उपचार प्रदान करने के लिए संकेत देती है.
आयुर्वेद में, रोग का निदान पांच महत्वपूर्ण स्तंभों पर आधारित होता है:
प्रकृति (प्राकृतिक प्रकृति):
प्रकृति के माध्यम से, आयुर्वेद व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक स्वभाव की विशेषताओं को निर्धारित करता है. इसका ध्यान रखना महत्वपूर्ण है क्योंकि प्रकृति के अनुसार व्यक्ति की प्रवृत्ति किसी विशेष रोग के लिए प्रवण हो सकती है.
दोष (विकृति):
आयुर्वेद में, तीन प्रकार के दोष होते हैं - वात, पित्त और कफ. ये शरीर में संतुलन का स्तंभ होते हैं और व्यक्ति की स्वास्थ्य स्थिति को प्रभावित कर सकते हैं. दोषों की स्थिति और प्रमाण रोग के निदान में महत्वपूर्ण होते हैं.
धातु (अवयव):
धातु संबंधी विचाराधीनता और उनकी संतुलन
रोग के निदान में महत्वपूर्ण है. इसके लिए वैद्य शरीर की मल, मूत्र, रक्त, मांसपेशियां, अस्थि, और और्जा को अवलोकित करते हैं ताकि उनमें किसी भी असंतुलन या विकृति की पहचान की जा सके।
रोग के निदान में महत्वपूर्ण है. इसके लिए वैद्य शरीर की मल, मूत्र, रक्त, मांसपेशियां, अस्थि, और और्जा को अवलोकित करते हैं ताकि उनमें किसी भी असंतुलन या विकृति की पहचान की जा सके।
लक्षण (संकेत):
रोग के निदान के लिए लक्षणों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। आयुर्वेद वैद्य रोगी के शरीर और मन के विभिन्न लक्षणों का विश्लेषण करते हैं और इन लक्षणों के आधार पर रोग का पता लगाते हैं.
अनुसंधान (परिक्षण):
रोगी के परिक्षण करके उनकी अनुसंधान की जाती है जैसे कि नाड़ी परीक्षण, जिह्वा परीक्षण, मल परीक्षण, रक्त परीक्षण, और अन्य जरूरी परीक्षण.इन परीक्षणों के माध्यम से वैद्य रोग के निदान को स्पष्ट कर सकते हैं और उपचार की योजना तैयार कर सकते हैं.
आयुर्वेदिक चिकित्सा के दौरान मरीज को भी काफी सावधान रहना होता है विशेषकर खानपान से संबंधित विषयों में चिकित्सक की सलाह काफी महत्वपूर्ण होती है.
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